SSC चेयरमैन S. Gopalakrishnan इंटरव्यू: फॉर्म, परीक्षा के सेंटर, बच्चा-बच्चा की परेशानी और बदलाव की असली कहानी
सरकारी नौकरी के सपने के पीछे कितनी मेहनत, कितनी हिम्मत और कितना धैर्य छुपा है—यह कोई छात्र या उसके परिवार से बेहतर नहीं जान सकता। लेकिन SSC के परीक्षा सिस्टम, सेंटर की चूकों, एजेंसी के टेंडर, सवालों की गलती, और देर रात घर लौटने के तनाव जैसी बातें हमारे दिल के बहुत करीब हैं। इसी वजह से जब ‘ललन टॉप’ के सौरव द्विवेदी ने SSC चेयरमैन S. Gopalakrishnan से सीधा इंटरव्यू लिया, तो हर सवाल बिलकुल आम लोगों के सवाल थे।
SSC के परीक्षा सिस्टम में क्या-क्या कड़ियाँ कमजोर?
पिछले कुछ सालों से SSC ने सारे एग्जाम कंप्यूटर पर ऑनलाइन करवाना शुरू किया है। हैरानी तब होती है जब TCS जैसी बड़ी, भरोसेमंद एजेंसी को साइड में कर, कम रेट वाली कंपनी (जैसे ADQT या एडिक्विटी) को टेंडर मिल जाता है। कंटेंट राइटर की नजर से देखें तो यह कंपनी वाला खेल सिर्फ पैसे बचाने तक सीमित नहीं, बल्कि बच्चों के सपनों, सेफ्टी, और कई बार रिजल्ट पर भी असर डालता है।
SSC चेयरमैन ने बताया—टेंडरिंग फुल ट्रांसपेरेंट होती है, मगर “फंड कटौती”, टेक्नोलॉजी, लोगों के दबाव और सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश (2020 शांतनु केस) के बाद, अब एजेंसी खुद सवाल सेट नहीं कर सकती। सिर्फ प्रोसेस को चलाती है, बाकी सवाल SSC के Subject Experts तैयार करते हैं।
सेंटर एलॉटमेंट—सबसे बड़ा दर्द!
अगर आप एक छात्र हैं, आपने फॉर्म भरा, पहली प्रेफरेंस अपने ही शहर या जिले की डाली, और रिजल्ट मिला—”आपका सेंटर 800 या 1200 किमी दूर”?
सैकड़ों बच्चों और उनके अभिभावकों की यही शिकायत थी—”दूर-दराज भेजने से खर्च भी बढ़ता है, डर भी, और लेडी कैंडिडेट्स के लिए तो पूरे घर की नींद उड़ जाती है।”
SSC चेयरमैन ने माना, पहले यह दिक्कत बार-बार आती थी, पर अब 80% विद्यार्थियों को उन्हीं की पसंद का सेंटर मिलता है; 20% अभी भी दूर भेजे जा रहे हैं।
- बच्चे यूपी से बिहार, गुजरात से छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र से बंगाल, अंडमान से कटक भेजे गए।
- कई लड़कियां पहली बार इतनी लंबी यात्रा कर रही थीं, उनके माता-पिता हर घंटे फोन करते रहे—”घर कब लौटोगी?”
- रात को एग्जाम हुआ, मेट्रो/बस बंद, बच्चे सड़कों पर—यह सच्चाई किसी कागजी सिस्टम में दर्ज नहीं होती!
परीक्षा में बार-बार गलती—इनविजिलेटर से सवाल तक
हर साल करोड़ों बच्चों के साथ ये तीन दर्द सबसे आम हैं—
- सवाल और ऑप्शन फेल: कई बार ऑप्शन रिपीट या हीं मिले, क्वेश्चन सेटिंग में गड़बड़। SSC का दावा—Subject Experts लगते हैं, AI नहीं, लेकिन एरर तो आते ही हैं। आपकी आपत्ति पर ₹100 लगती है, ताकि ज्यादा फालतू शिकायतें न आएं। पर SSC मानता है, गलत शिकायत पर जल्द ही फॉर्म दिखाई देगा, रिफंड मिल सकेगा।
- एग्जाम शिफ्टिंग, देर से शुरू होना: सर्वर डाउन, आधार में ऑथेंटिकेशन पिट गया, सेंटर स्टाफ की चूक, कभी-कभी कोर्ट केस या बाढ़ के कारण बच्चों को घंटों बाहर खड़ा रखना। ऐसी हालत में कोई बच्चा लेट हो तो गेट से बाहर, सेंटर खुद दो घंटे लेट हो जाए तो कोई नहीं बोलेगा!
- इनविजिलेटर, बाउंसर, पुलिस: कई बार सेंटर स्टाफ न पढ़ा लिखा, न ट्रेन्ड। बाउंसर की जगह सही गार्ड नहीं होते, बुजुर्ग महिला, या किसी स्टूडेंट को बस में भर कर घुमा दिया जाता है। अब SSC ने बायोमेट्रिक्स, आधार/फिंगरप्रिंट डबल चेक के जरिए सेंटर में सुधार की कोशिश की है।
SSC का चैलेंज सिस्टम—क्या वाकई में स्टूडेंट्स को फायदा?
SSC चेयरमैन कहते हैं—गलती मानने के बाद रिफंड सिस्टम आसान होगा, जैसे IT रिटर्न या DVT में होता है। बड़ी एजेंसी को करोड़ों की पेनल्टी दी गई हैं जहां क्वेश्चन या प्रोसेस गड़बड़ हुआ।
लेकिन कैंडिडेट्स का दर्द वही—”अगर मेरी आपत्ति सही है, रिजल्ट पर असर पड़ा, तो तैयारी का नुकसान कौन भरेगा?”
नॉर्मलाइजेशन फार्मूला—क्या शिफ्ट का फर्क मिट जाता है?
लाखों बच्चों की परीक्षा एक ही वक्त पे चैनलिज करना मुश्किल है, लिहाज़ा हर शिफ्ट में पेपर का लेवल या मुश्किल बढ़-घट जाता है। SSC अब भारतीय स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट से इक्वि-पर्सेंटाइल नॉर्मलाइजेशन फार्मूला लाया है, ताकि हर शिफ्ट में कठिनाई ‘एक जैसी’ समझी जाए।
फिर भी कई बच्चे मानते हैं—”कभी बेहद कठिन, कभी बहुत आसान, और उसके बाद कटऑफ में फर्क!”
Normalization की बारीकी समझना कई बार मुश्किल होता है, SSC कहती है—पूरा लिक्खा-पढ़ा फॉर्मूला वेबसाइट पर मौजूद है।
टेबल: 2025 में SSC एग्जाम में सबसे आम गड़बड़ियाँ (कैसे असर पड़ता है)
गड़बड़ी | SSC की प्रतिक्रिया | बच्चों का असल असर |
---|---|---|
सवाल या ऑप्शन गड़बड़ | चैलेंज कांड, रिफंड वादा, एक्सपर्ट कमेटी | गलत जवाब, रिजल्ट पर सीधा फर्क |
सेंटर बदलना या देर से खुलना | कागजी सूचना, अंतरिम व्यवस्था | सफर, खर्च, घर लौटने में डर और टेंशन |
आधार ऑथेंटिकेशन में फेल | जोड़-घट का विकल्प, फॉर्म एडिट | फॉर्म छूटना, एंट्री रुकना, मानसिक दबाव |
इनविजिलेटर या सेंटर स्टाफ की गलती | बाउंसर बैन, ट्रेनिंग, पुलिस एक्टिवेशन | अमानवीय व्यवहार, परीक्षा अनुभव खराब |
पेपर या शिफ्ट लेट | रशेड्यूल, लॉग चेक, दोबारा मौका | पेपर छूटना, देर रात घर लौटना, डिप्रेशन |
SSC चेयरमैन के सुधार की बातें—क्या इतनी आसान?
- ज्यादातर कैंडिडेट को अब 300 किलोमीटर के अंदर सेंटर देने का वादा।
- एग्जाम के बाद फॉर्म एडिट करने का ऑप्शन (अब नहीं तो जल्द आयेगा)।
- टेंडर में पारदर्शिता, एक्सपर्ट्स का चयन, टेक्नोलॉजी की शर्तें और मजबूत होंगी।
- आधार में दिक्कत हो तो अन्य पहचान, एकदम आसान एग्जाम एक्सपीरियंस।
- किसी तकनीकी गड़बड़ी से कोई बच्चा छूटेगा नहीं—उसको दोबारा एग्जाम देने का मौका मिलेगा।
कैंडिडेट्स के भाव, ग्राउंड का सच—रियल लाइफ कहानी
इंटरव्यू में सबसे ज्यादा मार्मिक रहा बच्चों का अनुभव—रेलवे स्टेशन से सेंटर, मेट्रो से बस, और सेंटर में घंटों इंतजार।
कई बार एक सेकंड लेट होने पर गेट से बाहर—लेकिन सेंटर खुद दो घंटे लेट तो कोई जुर्म नहीं!
लड़कियाँ, खासकर छोटे शहर या गांव से पहली बार आई थीं, परिवार में मां-पिता का दिल धड़कता रहा—”रात को दिल्ली में कैसे लौटेगी?”
हेल्पलाइन में कोई जवाब नहीं, शिकायत का फॉर्म भरो तो पता नहीं कब जवाब आएगा।
- कई बच्चे पेपर छूटने, गड़बड़-टेक्निकल फेल्योर के बाद घर लौटे, महीनों की तैयारी पर पानी फिर गया।
- इनविजिलेटर से कभी गलत व्यवहार, कभी बाउंसर की सख्ती और कभी पुलिस का टेंस माहौल—कई बच्चे खुद को कमजोर महसूस करते हैं।
- घर लौटने का स्ट्रेस, सफर का खर्च, और रिजल्ट पर सवाल—सब मिलाकर SSC परीक्षा सिर्फ एक कागजी इम्तिहान नहीं, असली जिंदगी का टेस्ट है।
राजकीय तंत्र, चीफ, और जिंदगी की असली जरूरत
SSC चेयरमैन के सारे सुधार जरुरी हैं, लेकिन असली बदलाव तब ही होगा जब हर स्तर पर इंसान की तकलीफ, उनकी आवाज,Grievance का प्रोसेस बिल्कुल फास्ट और सीधा हो।
- शिफ्ट, सेंटर, सवाल, बहाना—किसी भी लेवल पर गलती हो, जवाबदेही SSC-एगेंसी दोनों की हो, और पीड़ित को तुंरत सुनवाई मिले।
- फॉर्मभरने की गलती, आधार या फोटो मिस्टेक, टेक्निकल गड़बड़ी—सबका इंसानी हल हो, न कि सरकारी लेटर या लंबा इंतजार।
- बच्चों का पैसा, समय, और भविष्य कहीं सिस्टम की ढील या जटिलता में फंसना नहीं चाहिए।
FAQs – कैंडिडेट्स के सबसे आम सवाल
- Q. अगर मेरा सेंटर बहुत दूर चला जाए तो क्या कर सकते हैं?
SSC की हेल्पलाइन पर लिखें, लेकिन अब अधिकतर छोटे सेंटर चुनने की कोशिश हो रही है। शिकायत फौरन दर्ज करें, और इलाज पूछें। - Q. अगर ऑप्शन या क्वेश्चन गलत मिले तो?
चैलेंज फाइल करें, SSC का सिस्टम सुधर रहा है, रिफंड की उम्मीद अब तेज है। - Q. आधार या बायोमेट्रिक्स में दिक्कत हो जाए तो?
सेंटर मैनेजर को बताएं, नए डाक्यूमेंट चेक या नॉन-आधार रूट पर प्रोसेस शुरू हो। - Q. देर से पेपर हो तो, या मेरा एग्जाम छूट जाए तो?
SSC की पॉलिसी है कि टेक्निकल कारण से छूटे बच्चों को दोबारा मौका देना—शिकायत लिखें, सबूत रखें।
निष्कर्ष: असली बदलाव—सिस्टम से, आपके फीडबैक से
SSC का इंटरव्यू सिर्फ सरकारी सी सफाई नहीं, बच्चों के संघर्ष, घरवालों की चिंता, और सिस्टम की हर छोटी-बड़ी गड़बड़ी को सामने लाता है।
बदलाव तब तेजी से आएगा जब SSC, एजेंसी, और पार्टनर कंपनियां सिर्फ कागज नहीं, असली जिंदगी की चुनौतियों और आवाजों को सुनें।
अगर आपने SSC परीक्षा में कोई दर्द, तकलीफ, फॉर्म की गलती या सिस्टम की चूक देखी हो—तो अपनी राय, सुझाव या शिकायत नीचे जरूर लिखिए।
आपकी बात, अगली बार असली सुधार की नींव बन सकती है।
न्यायपालिका, चुनाव आयोग, SSC विवाद, शिक्षा नीति