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Jaya Bachchan का गुस्सा संसद में फूटा!

Jaya Bachchan ने संसद में उठाई फिल्म इंडस्ट्री की आवाज़: टैक्स बोझ पर क्यों गुस्से में दिखीं, और इसका असर देश पर?

परिचय

संसद के सत्र में Jaya Bachchan ने फिल्म इंडस्ट्री की आर्थिक दुर्दशा और सरकार की अनदेखी को लेकर जो सवाल उठाए, वह सिर्फ ग्लैमर या स्टारडम तक सीमित नहीं—बल्कि लाखों टेक्नीशियन, मजदूर, और दर्शकों के लिए भी उतने ही जरूरी हैं।

Jaya Bachchan – “फिल्म इंडस्ट्री पर टैक्स, हर आम आदमी पर असर!”

  • फिल्म इंडस्ट्री पर ऊँचा GST (18%-28%)—छोटे सिनेमाघर, सिंगल स्क्रीन लगातार बंद हो रहे हैं।
  • छोटी और मिड बजट फिल्मों के लिए टिकट टैक्स के कारण बजट रिटर्न मुश्किल, ज्यादा रिस्क, नौकरी छूटने का खतरा।
  • महंगाई इतनी बढ़ी कि दूध-सब्ज़ी में धनिया तक फ्री नहीं, टिकट में अब टैक्स!

रियल स्टोरी: इंडस्ट्री वर्कर्स की आवाज

  • राजेश (लाइटमैन): “पिछले दो साल से शूट कम है, छोटे प्रोड्यूसर लगातार काम बंद कर रहे हैं।”
  • रूबी (मेकअप आर्टिस्ट): “हफ्तों घर बैठना पड़ता है, क्योंकि कमर्शियल-सिनेमा को ही सपोर्ट है, लोकल रिजनल सिनेमा मर रहा है।”

समस्या क्या और इसका व्यापक असर?

समस्याअसरकिसको नुकसान
GST/Ticket Tax में छूट नहींछोटी फिल्मों, सिंगल-स्क्रीन का बंद होनामजदूर, स्टाफ, टेक्नीशियन, कम बजट फिल्में
महंगे टिकट दर्शक घटना, थियेटर का नुकसान, OTT की ओर झुकाव आम जनता, सिनेमाघर मालिक, लोकल व्यापारी
मनोरंजन और सांस्कृतिक विविधता की पहुंच सीमित भारत के क्षेत्रीय/स्थानीय सिनेमा की गिरावट, सामाजिक मुद्दों की कहानियाँ गुम आम दर्शक, छोटे निर्देशक/लेखक

ग्लोबल कम्पैरिजन – क्या बाकी देश ऐसा करते हैं?

  • फ्रांस, जापान, दक्षिण कोरिया में लोकल फिल्म इंडस्ट्री को टैक्स छूट, ‘स्क्रीन कोटा’, और सरकारी फंड मिलता है—ताकि इंडस्ट्री सस्टेनेबल रहे।
  • Jaya Bachchan ने इसी अंतर का हवाला देते हुए कहा—“सरकार, फिल्म सेक्टर को सिर्फ टैक्स से मत मापो, यह देश की संस्कृति और करोड़ों की रोज़ी-रोटी है।”

User/पाठक के लिए: क्यों है ये मुद्दा आपके काम का?

  • अब आम दर्शक के लिए थिएटर अनुभव महंगा, ज्यादातर शहरों में टिकट 200-1000 रुपए—जिसमें 18-28% GST है।
  • सस्ती-स्थानीय फिल्में, सामाजिक संदेश वाली कहानियों, या लोकल आर्टिस्ट को अब ओटीटी या यूट्यूब पर ही जगह मिलती है—सिनेमाघर उनके लिए संभव नहीं।
  • अगर सरकार इंडस्ट्री-सपोर्टिंग पॉलिसी लाए, तो हर वर्ग को मनोरंजन, रोजगार और सांस्कृतिक विकास मिलेगा।

FAQs

  • Q: Jaya Bachchan ने संसद में क्या कहा?
    फिल्म सेक्टर पर टैक्स बोझ, थियेटर बंद होना, और लाखों मजदूरों की मुश्किलों की ओर सरकार का ध्यान खींचा—कहा ये सिर्फ स्टार्स की इंडस्ट्री नहीं, आम इंसान का पेट भी है।
  • Q: टिकट-टैक्स या GST भारत में कितना है?
    नॉर्मली 18% (₹100 से कम) या 28% (₹100 से ऊपर); कई देशों में 5-7% या waived off होता है लोकल सिनेमा के लिए।
  • Q: क्या सरकार बदलाव पर विचार कर रही?
    वित्त मंत्री ने इंडस्ट्री को Revamp व ‘संगठित करने’ की बात कही है; लेकिन अभी तक कोई ठोस Notification नहीं आया।
  • Q: फिल्मों के बहाने आम आदमी पर असर कैसे?
    हर शहर-गांव में छोटा थिएटर, लोकल कलाकार—सब तबाह हो रहे, मनोरंजन अब मोल नहीं बस ‘elite’ तक सीमित है।

निष्कर्ष – आगे क्या?

Jaya Bachchan ने संसद से आवाज़ बुलंद की कि “अगर सरकार ने फिल्म सेक्टर की अनदेखी जारी रखी तो आने वाले कुछ सालों में भारत की पूरी मनोरंजन-संस्कृति-स्पिरिट खतरे में पड़ सकती है।” असली बदलाव तभी—जब टैक्स पॉलिसी, लोकल इंडस्ट्री सपोर्ट, और मजदूर सुरक्षा पर कदम हों।

आपका क्या कहना है? क्या टैक्स छूट से फिल्म, रोजगार और कल्चर आगे बढ़ेगा?
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