दशरथ मांझी – “माउंटेन मैन” की असली कहानी: संघर्ष, बेबसी और समाज की असली परीक्षा
परिचय: पत्थर से रास्ता बनाओ, मगर सिस्टम से?
दशरथ मांझी – गहलौर, गया, बिहार:
एक ऐसा नाम, जिसने 22 साल लगातार छेनी-हथौड़ी से पहाड़ काटकर अकेले रास्ता बनाया। वजह? पत्नी फगुनिया का समय पर अस्पताल न पहुंचना, प्रशासनिक उपेक्षा से मौत।
संघर्ष की झलक – अकेले और अक्खड़
- गांववालों ने पागल कहा, “कभी पहाड़ नहीं टूटे”—मांझी ने एक जवाब: “रास्ता बने बिन चैन नहीं।”
- बकरियां बेचकर औज़ार खरीदा, सुबह-शाम 22 साल—रोज़ सिर्फ एक सपना: बाकी गांववालियों की तरह दूसरे गांव-तबके वाला रास्ता मिले।
- आखिरकार 1982 में – 110 मीटर लंबा, 9.1 मीटर चौड़ा, 7.6 मीटर गहरा रास्ता…एक अकेला इंसान ने सरकारी सिस्टम को शर्मिंदा किया।
आज उनका परिवार–क्या सच में समाज/सरकार ने मदद की?
- मांझी के बेटे भागीरथ: “सरकार मदद, घर, पैसा—सब घोषणाएं बस कागज़ तक; घर आज भी फूस का है, इंदिरा आवास-दूसरी लिस्ट में नाम भी नहीं आया।”
- पिछली सरकारों ने कई बार गांव का दौरा किया—ज्यादातर सिर्फ मीडिया कवरेज/चुनाव जुमला; काम का कोई official फॉलो-अप मुश्किल से ही हुआ।
- मांझी परिवार को कोई पक्की नौकरी, स्कॉलरशिप, बिजनेस-सीड फंड न देने की शिकायत पंचायत और DM ऑफिस में दर्ज, मगर सालों से फाइल घुमती रह गई।
“मांझी” फिल्म, रॉयल्टी और वादों की सच्चाई
- 2015 की “मांझी – द माउंटेन मैन” ने करीब 12 करोड़ कमाए, डायरेक्टर ने 2% रॉयल्टी (करीब 24 लाख) देने का वादा किया—परिवार के मुताबिक आज तक कोई पूरा भुगतान या लिखित एग्रीमेंट नहीं।
- ग्राउंड रिपोर्ट/गांव इंटरव्यू: “कोई फिल्म वाला वापिस पार्टी/सेशन करने तो आया, पैसा-रॉयल्टी-कन्यादान आदि की घोषणाओं का कोई कागजी प्रमाण नहीं।”
राजनीतिक दौरे और वादे – कागज़ और चुनाव से आगे?
- राहुल गांधी (2025), कई स्थानीय सांसदों का दौरा। दावा: “मांझी परिवार को संपूर्ण आदर, सरकारी सहायता।” हकीकत: मुख्य आवास, सड़क, बच्चों की यूनिवर्सिटी फीस या हेल्थ कार्ड—कुछ भी सही से नहीं पहुँचा।
- चुनाव के वक्त मांझी परिवार को टिकट, आरक्षण, सहायता—लेकिन ज्यादातर केस में घोषणा के बाद कोई अमल नहीं।
सरकारी योजनाएँ vs असल हकीकत
- दशरथ मांझी रोड, स्कूल, अस्पताल—नाम जरूर दिखता है, लेकिन खुद मांझी का परिवार आज भी हाशिए पर।
- पिछली बार पंचायत स्तर पर बिजली-पानी, स्कॉलरशिप, राशन कार्ड पर भी कई बार ignore; सिर्फ लाभार्थी प्रमाण पत्र और फोटो, असल मुआवजा कम।
सीख – देश की प्रेरणा, मगर परिवार को कब न्याय?
- मांझी की कहानी आज भी स्कूल-कॉलेज, UPSC एसे में आती है—मगर क्या हम उनका परिवार, असली pain, neglect की जेल तोड़ पाए?
- प्रेरणा – “अगर सरकार, समाज fail हो तो भी इंसान हार न माने”—मगर अब जरूरी है, सम्मान के साथ मदद।
क्या कर सकते हैं – Practical Actionable Tips
- अपनी पंचायत, प्रदेश सरकार की public grievance, chief minister helpline, या DM/BDO status tracker पर ऑनलाइन/RTI से व्हिसलब्लो करें—“मांझी परिवार कीcurrent status रिपोर्ट दें!”
- सोशल मीडिया पर #SupportManjhiFamily के साथ लोकल प्रशासन, मीडिया, मिनिस्ट्री tagging करके टारगेटेड पोल खोलें–और मामले को वायरल करें।
- युवा – अगर आप नवोदित नेता/सोशल एक्टिविस्ट/राइटर हैं, मांझी फैमिली के लिए local crowdfunding या नुक्कड़ नाटक/स्कूल events करें, ताकि ग्राउंड सपोर्ट और जनदबाव बने।
- मीडिया हाउस, पंचायत, विधायक–जनता pressure से सिस्टम जिम्मेदार होता है; आपसे 5 calls/letter भी शक्ति का काम करेगी।
FAQs – पाठकों के असली सवाल
- Q. दशरथ मांझी परिवार को अब तक क्या सबसे बड़ी अनदेखी लगी?
– बेटे के अनुसार “सरकारी नौकरी, घर, बच्चों के एडमिशन और basic शिक्षा—core support आजतक नहीं मिली।” - Q. क्या कोई स्थानीय NGO/समाजसेवी मदद करता है?
– कुछ NGO ने स्कूल/किताब/एक्सपेंस के छोटे प्रोजेक्ट किए, पर long term प्लानिंग मिसिंग है—अधिकतर one-time donation या event तक सीमित। - Q. Future में क्या करो?
– Family को legal/RTI के जरिये पेंडिंग सरकारी/फिल्म रॉयल्टी/योजना लाभ क्लेम करना चाहिए; लोकल प्रोजेक्ट्स के लिए DM/SDO को सामूहिक पत्र/online demand जरुर भेजें।
निष्कर्ष
दशरथ मांझी की अकेली मेहनत और legacy सराहनीय है, लेकिन अब समय है कि समाज, पंचायत और प्रशासन सिर्फ धन्यवाद के बजाय “असल सम्मान, स्थायी नीति और पारिवारिक सुरक्षा” का हक दें।
सवाल: क्या हम उनके बच्चों के लिए भी ‘रास्ता’ बना सकते हैं?