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ट्रंप की धमकी, भारत का जवाब और ब्रिक्स की नई चाल

ट्रंप की धमकी, भारत का जवाब और ब्रिक्स का नया दांव – बदलती दुनिया, बदलता खेल

दोस्तो, 2025 की ये अगस्त की शुरुआत है और खा-खा कर थके हुए लोगों की जिंदगी में एक और बड़ा मसला छा गया – अमेरिका के सबसे चर्चित (और बॉलिवुड में भी फेमस) पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को तगड़ी धमकी दे डाली। बोले – “रूसी तेल लेना बंद नहीं किया तो अब तुम्हारे माल पर तगड़ा टैक्स लगेगा!”

क्या कहा ट्रंप ने – धमकी सच में या राजनीति?

सबकी नजरें तब घूम गईं जब 4–6 अगस्त के बीच ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर दो बार भारत को घुड़की दी। कारण? भाई, इंडिया रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीद रहा था!

पहली धमकी: “भारत इतनी बड़ी मात्रा में रूसी तेल ले रहा है, अब अगर नहीं रुके तो उनके सामान पर बम जैसा टैक्स मारूंगा!”
दूसरी: “24 घंटे में दिखा दूंगा कौन बॉस है।”
और अगले ही दिन डिक्लेयर – “अब इंडियन प्रोडक्ट्स पर 50% ड्यूटी!”
कितनी भी बार ये हो, लेकिन इन धमकियों से बाजार, राजनीति, और आम लोग – सबमें हलचल मच गई।

भारत का रुख – “अब हम डरेंगे नहीं!”

पहले तो इंडिया ने मुस्कराकर जवाब दिया – “हम अपनी ऊर्जा, तेल और आर्थिक नीतियां खुद तय करते हैं। कोई बाहरी डर से झुकने का समय गया।”

सरकार की भाषा सीधी थी – “हर वह कदम उठाएंगे जो देशहित में हो। अमेरिका का फैसला नाजायज़, नाकाफी, और हमारी आर्थिक आज़ादी के खिलाफ है।”
मतलब, अब डायलॉगबाजी का दौर गया, सीधी चालें और साफ़-साफ़ बातों का ज़माना है।

अब आया असली खेल – ब्रिक्स, आरआईसी और नई दोस्ती

ट्रंप के धमाके के बाद इंडिया अकेला नहीं दिखा। उधर ब्राजील के राष्ट्रपति लूला बोले – “मुझे कुछ कहना है तो मैं ट्रंप को नहीं, चीन के शी जिनपिंग और इंडिया के नरेंद्र मोदी को कॉल करूंगा!”

रूस, चीन, ब्राजील, सऊदी, यूएई, ईरान – इतनी सारी अर्थव्यवस्थाएं जब एक नाव में आ बैठें, तो अमेरिका भी सोच में पड़ जाता है।
ब्रिक्स – जिसमें अब 11 देश हो गए, करीब 4.5 अरब आबादी, 43% तेल का व्यापार और बड़ी-बड़ी कंपनियों का पैसा – वाकई में एक बहुत बड़ी ताकत है।

इन देशों के सब रिश्ते एकदम दोस्ती के नहीं – इंडिया-चीन की बॉर्डर लड़ाई, सऊदी-ईरान की ठिठक–सब चलता रहा है, पर जब इन पर बाहर से चोट आती है, तो कुछ देर के लिए ही सही, एक साथ मुंह खोल देते हैं।

डॉलर का खेल – क्या अब वाकई खतरे में है?

सारे जानकार, टीवी पर चिल्लाते एक्सपर्ट, और अखबारों वाले एक बात पर अटके हैं – “क्या ब्रिक्स करंसी सच में डॉलर को रिप्लेस कर सकेगी?”
असलियत – फिलहाल कोई भी साझा करंसी, जैसी यूरोप का यूरो है, नहीं दिख रही, लेकिन रुपए में रूस के साथ तेल, चीनी मुद्रा में 90% व्यापार, अलग-अलग देशों के अपने-अपने डील…
साफ़ है कि डॉलर के वर्चस्व में सेंध लगनी शुरू हो गई है, भले एकाएक ना सही।
अब हर देश सोच रहा है–अगर डॉलर-आधारित सिस्टम एक दिन मेरे खिलाफ भी चला, तो बचने का रास्ता खुद बनाओ।

आरआईसी (रूस-इंडिया-चाइना) की नई शुरुआत?

कुछ साल पहले गलवान में झड़प के बाद तीनों देशों का रिश्ता कितना ठंडा हुआ था, किसी से छुपा नहीं। चीन से बॉर्डर मसला, रूस के अपने एजेंडे, और इंडिया की संतुलन नीति – सब गड्डमड्ड।

अब अमेरिका के बार-बार डंडे दिखाने से, ये तीनों (RIC) फिर से साथ आने की सोच रहे हैं। क्या पूरी दोस्ती होगी? ये तो समय बताएगा, पर इतना जरूर है कि अमेरिका और पश्चिम को जवाब देने की हिम्मत अब दिखने लगी है।

अमेरिका, ब्रिक्स और आगे की चालें – सबका फायदा, सबकी मजबूरी

  • जीवन में कोई भी संबंध एकतरफा नहीं चलता – ब्रिक्स के हर देश के अमेरिका, यूरोप से भी गहरे रिश्ते हैं। सऊदी अरब, यूएई, मिस्र जैसे देश डॉलर सिस्टम में बुरी तरह जुड़े हैं – पर खुले आम वक्त-बेवक्त साथ दिखाना जरूरी हो गया है।
  • भारत कभी भी एकदम ‘एक पाले’ में नहीं जाता – यहां की नीति है, “जिधर देशहित, उधर इंडिया”। पश्चिम से टेक्नोलॉजी, पूरब से तेल-गैस, हर जगह से दोस्ती–यही हैं इंडिया के असली हथियार।
  • अमेरिका के लिए संकट – अगर बार-बार धमकाएगा, तो और देश अलग टीम बना सकते हैं, जो 20-30 साल पहले एक सपना जैसा होता।

भारत का नया चेहरा – संतुलन से अब लीडरशिप की ओर

इंडिया के नेता अब विदेश नीति में सिर्फ संतुलन, दोस्ती की बात नहीं करते – वे अब लगातार कहते हैं – “अपने देश, अपने लोगों और अपने हित के लिए जो सही है, करेंगे।”

चाहे वो चीन के साथ बैठक, रूस से सस्ते दाम में तेल, या ब्रिक्स की बैठकों में नेतृत्व, भारत हर तरफ अपने आप को ताकतवर और अपने पैरों पर खड़ा दिखाना चाहता है।

अमेरिका और बाकी बड़े देश भी अब यही मानने लगे हैं कि दुनिया एक “मोनोपोलर” (एक देश का दबदबा) से “मल्टीपोलर” (कई ताकतों वाली) हो रही है – और इंडिया उसी में एक बड़ी आवाज है।

कभी खतरे, कभी मौका – Dollar की कहानी खत्म?

आज भी लगभग 59% इंटरनेशनल रिजर्व डॉलर में है। लेकिन अब चाहे जिस सरकार से पूछो – “अगर कल आपके बैंक अकाउंट पर अमेरिका ने बैन लगा दिया, तो क्या करेंगे?”
जवाब – “नई मुद्रा/नेशनल करंसी में डील, आपसी विनिमय, या कोई नई व्यवस्था!”
यानी dollar बिल्कुल खत्म नहीं होगा, पर उसका अकेलापन अब भरोसेमंद नहीं।

  • ब्रिक्स या RIC सिर्फ आर्थिक-संस्था नहीं, ये “जमाने के हिसाब से” खोलते-बंद होते क्लब हैं – जहां जब जरूरत होती है, सब एकसाथ दिख जाते हैं।
  • लेकिन ये भी सच है, लंबे वक्त तक एक जैसी दोस्ती, एक जैसी नीति नहीं होती – कभी-कभी तो दो देशों के बीच फिर तकरार भी हो जाती है।

सीख, समझ और आगे की राह – आपकी नजर से

एक बात साफ है–भारत या कोई भी देश अब किसी एक की सुनने या डरने के लिए नहीं बना।
मल्टीपोलर दुनिया, नेहरू की “गुटनिरपेक्ष नीति” के नए रूप, अमेरिकी डॉलर की बादशाही की चुनौती, ब्रिक्स की नई उछाल – सबका फायदा उन्हीं को होगा जो समय के हिसाब से, अपने हित, जनता और अर्थव्यवस्था को आगे रखें।

इसमें असली रोल, मीडिया या सरकार के नहीं बल्कि उस “आम इंसान” के है–जो अब भी वही सोचता है–“क्या देश अपने फैसले खुद ले सकता है? क्या दुनिया में अब दबाव नहीं, बराबरी चलेगी?”

नई दुनिया बनेगी, इसमें भारत की आवाज भी उतनी ही गूंजेगी, जितना मजबूती से हम सब अपने अधिकार, जरूरत और समझदारी के लिए खड़े होंगे।

FAQs – सबका सीधा जवाब, बड़ी-बड़ी बातों में नहीं

  • Q. क्या भारत को डरना चाहिए ट्रंप की धमकी से?
    A. बिलकुल नहीं! इंडिया अब अपने फैसले खुद करता है, उसके पास कई विकल्प हैं।
  • Q. क्या ब्रिक्स करंसी सच में डॉलर की छुट्टी कर देगी?
    A. धीरे-धीरे बदलाव दिख रहा है, लेकिन पूरी तरह एकाएक नहीं। देश अब अपनी मर्जी की मुद्रा में दोस्ती कर रहे हैं, पर डॉलर पूरी तरह छूटेगा इसमें वक्त लगेगा।
  • Q. इंडिया किस गुट के साथ ज्यादा है–ब्रिक्स या अमेरिका?
    A. भारत दोनों से फायदा ले रहा है – जरूरत के हिसाब से हर जगह दोस्ती, लेकिन आत्मनिर्भर पहले।
  • Q. क्या इस सबसे आम आदमी को फर्क पड़ता है?
    A. जी हां, एनर्जी-तेल के दाम, इंटरनेशनल प्रोडक्ट्स, रुपए-डॉलर की वैल्यू, भारत की आर्थिक ताकत – आप तक सब आता है।

निष्कर्ष – बदलती दुनिया, नई उम्मीद, असली INDIA

अब वक्त है कि देश की विदेश नीति, आर्थिक चालें, व्यापार की दोस्ती और रणनीति सब पर अपनी नजर रखो। “डर के आगे जीत है” – बस यही मंत्र अब इंडिया जी रहा है।
आपका सवाल, सलाह या क्या आपको लगता है कि भारत और ब्रिक्स के पास वाकई दुनिया बदलने की ताकत है? नीचे लिखिए – आपकी आवाज भी नए ज़माने का हिस्सा है।

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