झालावाड़ स्कूल हादसा: बच्चों की जान गई, अब प्रशासन नींद से कब जागेगा?
स्थान: झालावाड़, राजस्थान
हादसा: भारी बारिश में सरकारी स्कूल की जर्जर छत गिरने से बच्चों की मौत और कई घायल
सबसे कठिन सवाल: कब बदलेगा सिस्टम? क्या अफसर और नेताओं की जिम्मेदारी सिर्फ आश्वासन तक है?
कैसे हुआ यह हादसा — बच्चों के परिवारों का बयान
पिपलौदी गांव के सरकारी स्कूल में रोज़ की तरह बच्चे कक्षा में थे। बाहर मूसलाधार बारिश जारी थी। अचानक पुरानी छत भरभरा कर गिर गई। बच्चों की चीखें, माता-पिता की दौड़–गांव में अफरा-तफरी मच गई।
पिता राधेश्याम मीणा (पीड़ित):
“हमने हर बार स्कूल में बोला–इमारत गिरने वाली है। एक बार भी अधिकारी आकर नहीं देखे। आज हमारा लाल ही चला गया।”
सिस्टम फेल — प्रशासन से कितने बार गुहार?
- ग्रामीणों ने पंचायती स्तरीय पत्र, 2 बार ग्रामसभा में प्रस्ताव और 1 बार मीडिया को भी जानकारी दी थी।
- इसके बावजूद बच्चों की पढ़ाई उसी जर्जर भवन में जारी रही।
- स्कूल टीचर (नाम गोपनीय): “हमें भी डर लगता था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।”
आज ही नहीं, कब-कब हुई ऐसी लापरवाही?
- 2019, अलवर: स्कूल की दीवार गिरने से 2 बच्चों की जान गई थी।
- 2023, बिहार: बारिश के बाद स्कूल के छज्जे का हिस्सा गिरा, एक छात्रा घायल।
- राजस्थान में शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, हर चौथा सरकारी स्कूल building norms के तहत “unsafe” है।
सरकार की प्रतिक्रिया—फिर वही ‘जांच और कार्रवाई’?
राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने दुख जताया और जांच के आदेश दिए। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और गजेंद्र सिंह शेखावत ने सांत्वना दी, मुआवजे का भी ऐलान हुआ।
“पूरा सच सामने लाया जाएगा, जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई होगी।” – शिक्षा मंत्री
लेकिन ग्रामीणों और परिजनों में गुस्सा: “क्या बस दुख जताना और एडवाइजरी काफी है? कब तक बच्चे इस सिस्टम का बोझ झेलेंगे?”
अब आगे क्या? – सिस्टम बदलाने के लिए 5 जरूरी सबक
- हर स्कूल के लिए सालाना स्ट्रक्चरल ऑडिट अनिवार्य–छोटे गांव स्कूल भी शामिल रहें।
- मातापिता/टीचर्स की शिकायत को इग्नोर न किया जाए—complaint अटेंशन ट्रैकर बने।
- जर्जर भवन में पढ़ाई रोकें, Emergency Mobile Classroom/Alternative व्यवस्था अनिवार्य।
- हर जिले की शिक्षा समिति में अभिभावकों की सीधी भागीदारी हो।
- Students/Panchayat को “School Safety Champion” प्रोग्राम में जोड़ा जाए, ताकि आवाज वक़्त पर उठ सके।
ग्राउंड रिपोर्ट – गांव, स्कूल और बच्चों की सोच
- कक्षा 6 के छात्र रवि: “अब तो डर लगता है स्कूल आने में, दोस्त लापता हो गए।”
- मां संतोष देवी: “हमारा घर, जगह-जगह टपकती छत, स्कूल भी वैसा ही था; क्या बच्चों की जान सस्ती है?”
FAQs
1. यह हादसा कब और कैसे हुआ?
25 जुलाई 2025, झालावाड़ के पिपलौदी गांव में भारी बारिश के दौरान सरकारी स्कूल की पुरानी छत गिर गई, जिसमें 4 बच्चों की मौत हो गई।
2. क्या प्रशासन को पहले से खबर थी?
हां, ग्रामीणों और स्कूल के स्टाफ ने बार-बार चेताया था, मगर लापरवाही जारी रही।
3. सरकार ने एक्शन लिया क्या?
अब जांच के आदेश और राहत, पर असली जवाबदेही और सख्त सजा का इंतजार है।
4. आगे से ऐसे हादसे न हों, क्या जरूरी कदम?
स्ट्रक्चरल ऑडिट, local कमीटी, कमजोर भवन में तुरंत रोक—सरकार और अभिभावकों की संयुक्त भागीदारी अनिवार्य है।
निष्कर्ष:
यह हादसा राजस्थान ही नहीं, पूरे देश के स्कूल सिस्टम को आईना दिखा गया है। बच्चों की जान से ऊपर कोई अफसर, सिर्फ़ “कागज़ी रिपोर्ट” या राजनैतिक बयान नहीं हो सकता।
सिर्फ जांच और दुख जताने से नहीं, अनदेखी करने वाले अफसरों पर फौरन और बडी कार्रवाई से ही बदलाव संभव है।
क्या आपके इलाके में भी ऐसे स्कूल हैं? तुरंत आवाज उठाएं—क्योंकि अगली खबर आपके गांव की भी हो सकती है।
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